महाकुंभ (MAHAKUMBH 2025): संगम नगरी में आस्था का महासंगम

image

महाकुंभ मेला (Mahakumbh 2025), जो भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का सबसे बड़ा आयोजन है, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है। यह आयोजन न केवल भारत ही, बल्कि विश्व भर के करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यहां महाकुंभ 2025 से जुड़ी जानकारी, तिथियां, विशेषताएं और इसके महत्व के बारे में जानते हैं:-

महाकुंभ (Mahakumbh) क्या है?

महाकुंभ (Mahakumbh) एक भव्य धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद आयोजित किया जाता है। इसे 144 वर्षों में एक बार चार प्रमुख तीर्थ स्थलों ( प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक ) में बारी-बारी से मनाया जाता है। 2025 में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम पर होगा, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियां मिलती हैं। यह आयोजन भारतीय संस्कृति, आस्था और आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। महाकुंभ का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि, साधना, और मोक्ष प्राप्ति है, जो इसे विश्वभर के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय बनाता है।

mahakumbh 2025

महाकुंभ (Mahakumbh 2025) की तिथियां

S.No.Name of FestivalDate/Day
 1 Paush Purnima / पौष पूर्णिमा 13-01-2025/Monday
 2 Makar Sankranti / मकर संक्रांति 14-01-2025/Tuesday
 3 Mauni Amavasya (Somvati) / मौनी अमावस्या 29-01-2025/Wednesday
 4 Vasant Panchami / वसंत पंचमी 03-02-2025/Monday
 5 Maghi Purnima / माघी पूर्णिमा 12-02-2025/Wednesday
 6 Mahashivratri / महाशिवरात्रि 26-02-2025/Wednesday

इन पवित्र तिथियों पर संगम में स्नान करने का विशेष महत्व है।

महाकुंभ (Mahakumbh 2025) की विशेषताएं

  1. धार्मिक अनुष्ठान: मेले में यज्ञ, साधु-संतों के प्रवचन, और भजन-कीर्तन का आयोजन होगा।
  2. अखंड साधना: दुनियाभर से आए साधु-संत यहां ध्यान और साधना में लीन रहेंगे।
  3. आध्यात्मिक यात्रा: महाकुंभ में भाग लेना आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
  4. संस्कृति और परंपरा का उत्सव: महाकुंभ भारतीय संस्कृति की विविधता और आध्यात्मिकता को प्रदर्शित करता है।

अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में अंतर

भारत के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, और महाकुंभ का विशेष स्थान है। ये आयोजन न केवल आस्था और आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं, बल्कि इनका संबंध ग्रह-नक्षत्रों के गोचर से भी है। आइए, इन तीनों कुंभ मेलों का अंतर और उनकी ज्योतिषीय विशेषताओं को विस्तार से समझते हैं।

1. अर्धकुंभ मेला

  • आयोजन का समय: हर 6 साल में आयोजित किया जाता है।
  • स्थान: केवल दो तीर्थ स्थलों पर – प्रयागराज और हरिद्वार।
  • ग्रहों का प्रभाव:
    जब गुरु (बृहस्पति) कुंभ राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब अर्धकुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
  • महत्व:
    इसे कुंभ मेले का आधा चरण माना जाता है। इसमें स्नान, ध्यान और आध्यात्मिक साधना का महत्व है।

2.पूर्णकुंभ मेला

  • आयोजन का समय: हर 12 साल में एक बार।
  • स्थान: चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।
  • ग्रहों का प्रभाव:
    जब गुरु और सूर्य विशेष राशियों में गोचर करते हैं, तब इसका आयोजन होता है। उदाहरण के लिए:
    • हरिद्वार: गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में।
    • प्रयागराज: गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में।
  • महत्व:
    इसे “पूर्ण” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह चारों तीर्थ स्थलों पर आयोजित होता है और अधिक व्यापक होता है।
webdev adv

3. महाकुंभ मेला

  • आयोजन का समय: हर 12 पूर्णकुंभ मेलों (144 वर्षों) के बाद।
  • स्थान: केवल प्रयागराज में।
  • ग्रहों का प्रभाव:
    महाकुंभ मेला तब आयोजित होता है जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा विशेष योग बनाते हैं। यह योग ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ और पवित्र माना जाता है।
  • महत्व:
    इसे आस्था और मोक्ष की सबसे बड़ी यात्रा माना जाता है। महाकुंभ में स्नान को “अमृत स्नान” के समान कहा गया है।

ग्रहों के गोचर से संबंध

कुंभ मेलों का आयोजन मुख्यतः गुरु, सूर्य और चंद्रमा के विशेष योगों पर आधारित है। यह ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर तय किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार:

  • गुरु: धार्मिकता, ज्ञान और मोक्ष का कारक है।
  • सूर्य: आत्मा की शुद्धि और जीवन ऊर्जा का प्रतीक है।
  • चंद्रमा: मन की शांति और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

इन तीनों ग्रहों के विशिष्ट योग नदियों के जल को “अमृत तुल्य” बनाते हैं, जिससे इन दिनों स्नान का अत्यधिक महत्व है।

digital marketing

अध्यात्म और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

धार्मिक मान्यता के अनुसार, कुंभ मेलों में स्नान करने से जीवन के पाप नष्ट होते हैं और आत्मा को शुद्धि मिलती है। वहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन तिथियों पर संगम का जल खनिजों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

प्रयागराज में क्या खास है?

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, महाकुंभ के दौरान एक आध्यात्मिक नगरी बन जाता है। संगम क्षेत्र में अस्थायी टेंट, बड़े-बड़े पंडाल और सेवा शिविर बनाए जाते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु भारतीय व्यंजनों का स्वाद, कुम्भ मेलों की बाजार और अद्वितीय कलाकृतियों का आनंद उठा सकते हैं।

कैसे पहुंचे महाकुंभ 2025?

  • वायु मार्ग: प्रयागराज एयरपोर्ट देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
  • रेल मार्ग: प्रयागराज जंक्शन और छिवकी स्टेशन पर भारत के विभिन्न कोनों से ट्रेनें आती हैं।
  • सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से प्रयागराज तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

महाकुंभ 2025 में क्या करें?

  1. स्नान की योजना बनाएं: भीड़ से बचने के लिए अपनी यात्रा पहले से तय करें।
  2. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन: मेले में भाग लेने के लिए सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करें।
  3. सुरक्षा नियमों का पालन करें: मेले के दौरान प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करें।

महाकुम्भ के इस पावन आयोजन पर आधिकारिक वेबसाइट लांच किया गया है। इस वेबसाइट पर महाकुम्भ से सम्बंधित सभी जानकारियां उपलब्ध हैं।

image 3

निष्कर्ष

अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय संस्कृति और ज्योतिष का अद्भुत संगम हैं। इनका आयोजन न केवल ग्रहों की विशिष्ट स्थिति का प्रतीक है, बल्कि मानव जीवन को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से संतुलित करने का माध्यम भी है।

2025 में प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ के इस महासंगम में शामिल होकर इसकी दिव्यता का अनुभव करें और जीवन को नई दिशा दें।

news adv

इसी तरह के और न्यूज़ के लिए होमपेज पर जाएँ।

हर हर गंगे!”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *